हताश 
जीवन चिरकालिक क्रन्दन ।
 मेरा अन्तर वज्रकठोर,
 देना जी भरसक झकझोर,
 मेरे दुख की गहन अन्ध-
 तम-निशि न कभी हो भोर,
 क्या होगी इतनी उज्वलता-
 इतना वन्दन अभिनन्दन ?
 हो मेरी प्रार्थना विफल,
 हृदय-कमल-के जितने दल
 मुरझायें, जीवन हो म्लान,
 शून्य सृष्टि में मेरे प्राण
 प्राप्त करें शून्यता सृष्टि की,
 मेरा जग हो अन्तर्धान,
 तब भी क्या ऐसे ही तम में
 अटकेगा जर्जर स्यन्दन ?
सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
 
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